रायपुर।
बस्तर के जंगलों में बच्चों को नक्सली हिंसा का पाठ पढ़ा रहे हैं। हाल के दिनों में पुलिस ने जंगलों से ऐसे कई दस्तावेज बरामद किए हैं, जिनसे इस बात की पुष्टि होती है। पुलिस के दबाव में सरेंडर करने के वाले माओवादियों ने भी नक्सल स्कूलों की पुष्टि की है। सेंट्रल इंटेलीजेंस के एक अफसर ने बताया कि कई बार फोर्स को जंगलों में ऐसे झोपड़े मिले हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि यहां बच्चों को ट्रेनिंग दी जाती है। पुलिस के आला अफसरों को भी नक्सल स्कूलों की सूचना है। हालांकि डीजीपी नक्सल ऑपरेशन डीएम अवस्थी कहते हैं कि हम ऐसी जगहों पर ऑपरेशन से बचते हैं, जहां मासूमों की जान को खतरा हो।
संयुक्त राष्ट्रसंघ ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें कहा गया है कि छत्तीसगढ़ और झारखंड में नक्सली बच्चों का उपयोग हिंसा में कर रहे हैं। नईदुनिया ने 2012 में बीजापुर के जंगलों में स्थित जप्पेमरका गांव में संचालित नक्सल आश्रम शाला की एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उस आश्रम शाला को पुलिस ने ध्वस्त किया था। वहां मौजूद 30 बच्चों ने मीडिया के सामने एक नृत्य प्रस्तुत किया था, जिसके बोल थे-सीएम आएंगे तो ऐसे मारेंगे, मंत्री आएंगे तो गला काट देंगे आदि-इत्यादि। इससे पता चलता है कि नक्सल स्कूलों में बच्चों का कैसे ब्रेन वाश किया जा रहा है। पुलिस अफसरों ने बताया कि उन्हें जंगल में कई बार गोंडी की वर्णमाला मिली है। नक्सल स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले दस्तावेजों में हिंसा के पाठ भी मिले हैं। बस्तर के जननायक शहीद गुंडाधूर और देश के युवाओं के प्रेरणास्रोत शहीद भगत सिंह उनके पाठ्यक्रम के मूल में हैं।