नई दिल्ली |
बिहार में जेडीयू और बीजेपी के फिर से साथ आकर सरकार बनाने के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। इनमें एक अहम पहलू है मुस्लिम वोटरों का। बीजेपी एक बार फिर यह साबित करने में कामयाब रही है कि मुस्लिम वोटर अब न तो उसकी चुनावी राजनीति में आड़े आते हैं और न ही दूसरें दलों के साथ दोस्ती में बाधा बनते हैं, जबकि एक वक्त ऐसा था जब बीजेपी को इसी वजह से ‘अछूत’ समझा जाता था।
2015 के बिहार चुनाव में नीतीश और लालू, कथित ‘सांप्रदायिक’ ताकतों से लड़ने के नाम पर ही साथ आए थे, लेकिन जिस तरह से नीतीश ने लालू को झटका देकर बीजेपी से हाथ मिलाया, उससे यह साफ हो गया कि बीजेपी की मुस्लिम वोटरों की ‘परवाह न करने’ की रणनीति को नीतीश ने भी सही मान लिया है। नीतीश और बीजेपी पहले भी गठबंधन पार्टनर रह चुके हैं और दोनों ने मिलकर 2010 के चुनाव में आरजेडी को 22 सीटों पर समेट दिया था।
बिहार: अब मुस्लिम वोटों की ‘मोहताज’ नहीं BJP
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