अहमदाबाद।
राज्य सरकार ने सोमवार को गुजरात उच्च न्यायालय को निजी स्कूलों की लूट को रोचक तरीके से बे-पर्दा किया। सरकार ने कहा कि निजी स्कूल ज्ञान और बुद्धि की देवी सरस्वती की तुलना में धन, सौभाग्य और समृद्धि की देवी लक्ष्मी को लेकर ज्यादा चिंतित रहते हैं।
एडवोकेट जनरल ने कोर्ट से कहा कि ये निजी स्कूल ठीक से शिक्षा देने के बजाय पैसा छापने में अधिक दिलचस्पी रखते हैं। यह बात उन्होंने उन स्कूलों पर चुटकी लेते हुए कही, जो नए लागू किए गए फीस रेगुलेशन एक्ट के विरोध में हाई कोर्ट गए हैं। इस नियम के लागू होने के बाद प्राइवेट स्कूलों के फीस लेने की सीमा तय कर दी गई है।
एडवोकेट जनरल ने आरोप लगाया कि निजी स्कूल शिक्षा देने के लिए अत्यधिक शुल्क वसूलते हैं। उन्होंने अपनी बात को रखने के लिए संस्कृत के कई श्लोकों का हवाला दिया। राज्य सरकार ने कहा कि शिक्षा को मुफ्त में दिया जाना है, लेकिन निजी स्कूल हमेशा इस बात में रुचि रखते हैं कि वे बच्चों से कितना अधिक पैसा निकाल सकते हैं।
सीबीएसई, आईसीएसई के साथ ही अल्पसंख्यक संस्थानों से संबद्ध कई निजी स्कूलों द्वारा दायर की गई याचिकाओं की सुनवाई उच्च न्यायालय कर रहा है। इन निजी स्कूलों का दावा है कि फीस रेगुलेशन कानून उन पर लागू नहीं होता है। निजी स्कूलों ने नए कानून की वैधता को भी चुनौती दी है।
उधर, राज्य सरकार का कहना है कि यह कानून लागू करने के लिए विधायी सक्षमता है। ऐसे समय में जब शिक्षा का व्यावसायीकरण किया जा रहा है, तो यह सरकार का अधिकार है कि वह जनता के हित में उचित प्रतिबंध लागू करे।