भोपाल।
प्रदेश में पिछले साल खराब हुई खरीफ फसलों के लिए हजारों किसानों को पात्र होते हुए भी प्रधानमंत्री फसल बीमा नहीं मिल पाया। सरकारी तंत्र की लापरवाही के चलते प्रभावित किसानों का फसल बीमा दावा ही नहीं बन पाया।
दरअसल, राजस्व अधिकारियों ने फसल के बोए क्षेत्र और बीमित क्षेत्र का डाटा दर्ज करने में लापरवाही बरती। नतीजा यह हुआ कि बीमा कंपनियों में इनके दावे ही प्रस्तुत नहीं हो पाए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने जब यह बात आई तो वे भी चौंक गए। कृषि विभाग ने राजस्व विभाग को दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए लिखा है। वहीं कलेक्टरों से कहा है कि वे बीमा कंपनियों से बात कर अतिरिक्त दावे मंजूर कराएं।
सूत्रों के मुताबिक सतना, सीधी, भोपाल, विदिशा, सीहोर, रायसेन, सागर सहित अन्य जिलों में बोवनी और बीमित रकबे में जमीन-आसमान का अंतर सामने आया है। सागर में तो चार-पांच हजार किसानों का प्रीमियम बैंक में जमा हो गया पर बीमा कंपनी को नहीं दिया गया। इसकी वजह से किसानों का बीमा ही नहीं हो पाया। इसको लेकर पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने पत्र भी लिखा था। यह बात राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी की बैठक में भी उठ चुकी है।
कृषि विभाग के अधिकारियों ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि बीमा कंपनी के पास समय पर प्रीमियम की राशि जमा हो जानी चाहिए। इसके लिए पूरी तरह से बैंक जिम्मेदार हैं और किसानों का जो भी क्लेम बनता है, वो बैंक को दिलवाना चाहिए। इसी तरह विदिशा में पंचायत सचिवों ने प्रीमियम लेकर रख लिया। इसको लेकर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री को पत्र भी लिखा है।
उधर, एक दर्जन से ज्यादा जिलों में राजस्व विभाग के पटवारियों ने बोवनी और बीमित रकबे को दर्ज करने में लापरवाही बरती। सतना के कोटा गांव में 130 हेक्टेयर बीमित क्षेत्र बताया गया, जबकि बोवनी का रकबा मात्र सात हेक्टेयर है। इसी तरह आमा गांव में 91 हेक्टेयर के विरुद्ध बोवनी का रकबा सिर्फ 2 हेक्टेयर रिकॉर्ड में दर्ज है।